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Showing posts from August, 2015

प्रेरक पंक्तियाँ

प्रेरक पंक्तियाँ  जीत अगर दूर होती जाए । हार निश्चित भी हो जाए । तो कभी गम नहीं करना । हौंसले इतने बुलंद रखना । की ख्वाहिशें बिखर भी जाए । मगर , कोशिशें बंद मत करना ।  मंज़िल पास हो तो क्या ? जबतक हाशिल न हो जाए ।  जीत महसूस मत करना ।  शान (उर्फ़ सुभम ) की कलम से। …… 

बेशक तू भूल गई । ............

आशिकी की महफ़िल ,                                      आशिकों का आना।                                          रोज़ शाम तेरी जुल्फों का लेहराना।  बेशक तू भूल गई , कायल था तेरे जुल्फों की छाँव का ये दीवाना। ढूंढा गली गली तुझे, तेरे जाने के बाद। तुझ बिन सब बेरंग लगने लगा, हर शाम हर अफ़साना । बेशक तू भूल गई , कायल था तेरे हर रंग का ये दीवाना ।  मंजूर करूँ तू जो कुछ भी सजा दे , कहीं तेरी जुदाई इस दीवाने को पागल न बना दे । काश खुदा फिर लौटा दे (२) नज़रे चुरा कर वो तेरा शर्माना । बेशक तू भूल गई , कायल था तेरे शर्म का ये दीवाना ।  शान ( उर्फ़ सुभम ) की कलम से। ………।  

किस हद तक मुहब्बत की बदनामी ?

किस हद तक मुहब्बत की बदनामी ? मुहब्बत को लोगों ने इस कदर बदनाम कर दिया ।  की आज , मेहबूबा किराए पे और मुहब्बत कोठों पे मिलती है।  शान ( उर्फ़ सुभम ) की कलम से। ....... 

झील सी आँखे।

याह अल्लाह अगर हम उनकी झील सी आँखों में खो जाते। तो , तो तुम्हारी कसम , हमारी जुबां से सिर्फ मुहब्बत के अलफ़ाज़ बहार आते। शान ( उर्फ़ सुभम ) की कलम से। 

इंसानियत

१५ ऑगस्ट आप सभी पाठकों को मुबारक हो  ।  आज के दिन कुछ इंसानियत की बात करते हैं।  …………  इंसानियत   न हिन्दू बनो ।  न मुसलमान बनो । ये मजहबी दुनिया आपकी पहचान ले लेती है ।  बनना ही है तो इंसान बनो ।  यह इंसान सख्शियत ही कुछ ऐसी है जो इंसानियत के लिए जान दे देती है । शान ( उर्फ़ सुभम ) की कलम से । ....... 

आँखों की लाली......

तेरी याद मे बहे आंशुओं का नतीजा है ये आँखों की लाली , मुर्ख है दुनिया , जो समझती है इस नाकारा ने शराब की कई बोतलें खाली कर डाली । शान (उर्फ़ सुभम ) की कलम से। ....

साधू

कुछ पन्क्तिओ द्वारा मैंने बताना चाहा है की साधू कौन है? उसकी विशेषता क्या है ? उम्मीद है आप सभी पाठक गण को पसंद आये । माता के मंदिर मे हूँ ,मैं माता का दुलारा हूँ । प्रेम बाटूँ सबसे मिलकर मैं बुराई का हत्यारा हूँ । भटके मानव,पशु ,पक्षी खातिर मैं दरिया का किनारा हूँ ।  पापी एवम अधर्मी खातिर, मैं सिर्फ एक आवारा हूँ ।  (    एक साधू की ताकत क्या है ? वह क्या क्या कर सकता है ?    ) मैं जहा हरी भजन कर दूँ ,वहाँ भक्ति मार्ग एक बन जाए ।  जो आचरण करे मेरे कीर्तन का परिवार समेत वो तर जाए । (   उसे मोह किसका है ? उसके माता-पिता कौन है ?  उसका घर कहा है ? उसका पता,ठिकाना क्या है ?   ) मोह-माया बस प्रभु की है,ना रिश्ता ना परिवार मेरा ।  घर मेरा मंदिर ही है ,मंदिर में मूरत माता की । जो विश को कंठ लगा बैठे , ऐसी लीला है पिताजी की । मोदक जिसका प्रिय आहार , वही भाई मेरा वही मित्र मेरा । ( और आखरी में एक साधू के सभी परिवार जानो की गिनती बताते हुवे कहा है की ) तैतीस कोटि एक जन संख्या है , इतना छोटा परिवार मेरा । ( किस आधार पर वह तैतीस कोटि  एक  जान संख्या की बात करत

तहजीब-ऐ-इश्क़..........

किसी की बेवफाई पर फ़रियाद ना कर ऐ दोस्त , अक्सर बेवफाई भी तहजीब-ऐ-इश्क़ सीखा देती है । शान (उर्फ़ सुभम) की कलम से। …… 

दिलेरी सीखनी है ................

दिलेरी सीखनी है तो समंदर से सीखो, क्योकि गहराई का पता लगाने वाले भी अक्सर उसमे डूब जाय करते हैं । शान (उर्फ़ सुभम ) की कलम से.……