साधू

कुछ पन्क्तिओ द्वारा मैंने बताना चाहा है की साधू कौन है? उसकी विशेषता क्या है ?

उम्मीद है आप सभी पाठक गण को पसंद आये ।



माता के मंदिर मे हूँ ,मैं माता का दुलारा हूँ ।
प्रेम बाटूँ सबसे मिलकर मैं बुराई का हत्यारा हूँ ।
भटके मानव,पशु ,पक्षी खातिर मैं दरिया का किनारा हूँ । 
पापी एवम अधर्मी खातिर, मैं सिर्फ एक आवारा हूँ । 

(    एक साधू की ताकत क्या है ?
वह क्या क्या कर सकता है ?    )

मैं जहा हरी भजन कर दूँ ,वहाँ भक्ति मार्ग एक बन जाए । 
जो आचरण करे मेरे कीर्तन का परिवार समेत वो तर जाए ।

(   उसे मोह किसका है ?
उसके माता-पिता कौन है ? 
उसका घर कहा है ?
उसका पता,ठिकाना क्या है ?   )

मोह-माया बस प्रभु की है,ना रिश्ता ना परिवार मेरा । 
घर मेरा मंदिर ही है ,मंदिर में मूरत माता की ।
जो विश को कंठ लगा बैठे , ऐसी लीला है पिताजी की ।
मोदक जिसका प्रिय आहार ,
वही भाई मेरा वही मित्र मेरा ।

( और आखरी में एक साधू के सभी परिवार जानो की गिनती बताते हुवे कहा है की )

तैतीस कोटि एक जन संख्या है , इतना छोटा परिवार मेरा ।

( किस आधार पर वह तैतीस कोटि  एक  जान संख्या की बात करता है ? तैतीस कोटि यानि प्रकार तो देवी देवत हो गए जिन्हे वो अपने माता पिता एवम रिश्तेदार बताता है और खुद को भी जोड़ कर वह तैंतीस कोटि  एक बनता है )


शान (उर्फ़ सुभम ) की कलम से। .... 

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