Posts

Showing posts from September, 2015

निगाहें

निगाहें चार हो जाएँ मैं तलबदार हूँ उसका , महफ़िल-ए-दोस्तों में बात हमेशा राज़ रखता हूँ | शान(उर्फ़ सुभम ) की कलम से ………… 

हुस्न की बात

तारीफ़ें बर्बाद मत कर दो, इसे तुम सहेज कर रखो। हुस्न की बात करने को यहाँ चेहरे बहोत हैं । शान (उर्फ़ सुभम) की कलम से। ..........   

हिन्दी दिवस के शुभ अवसर पर मेरे साथी कवि मित्रो के लिए एक सुंदर रचना |

Image
हिन्दी दिवस के शुभ अवसर पर मेरे साथी कवि मित्रो के लिए एक सुंदर रचना ख़ास कर अलोक जी के लिए। समय की बढ़ती हुई रफ़्तार में ।  आप युहीं बढ़ते रहें ।  जीत हमेशा आपकी हो ।  दुश्मन हार से डरते रहें ।  सबके बदलते हुवे विचरों पर ~   अमल आप युहीं करते रहें । समय की बढ़ती हुई रफ़्तार में ।  आप युहीं बढ़ते रहें । बढ़ता रहे रुतबा भी ।  जब-जब उम्र में बढ़ाव हो । फ़तेह हमेशा आपकी हो ~  चाहे मुश्किल कोई पड़ाव हो । समय की बढ़ती हुई रफ़्तार में ।  आप युहीं बढ़ते रहें ।  सरजमीन-ए- हिन्दुस्तान पर ।  अपना नाम यूँही करते रहें ।   आप युहीं बढ़ते रहें । शान (उर्फ़ सुभम ) की कलम से। ……… 

सपनों में मेहबूबा ~सपनों से न उठाना |

 वो बालों से चेहरा छुपाना ।  यूँ गालों पे उंगलियां घुमाना । चोरी से देख कर मुझको किताबों के पन्ने बदलना ।  अरे उनका दीदार करा दो …… जो निगाहें कातिलाना ।  खुदा का सुखरिया ।  ख़्वाबों में ~  कफ-ए-डस्क पर उसकी मुझे कलम बनाना ।  मामूली कलम समझ मुझको उसका होठों से लगाना।  पकड़ उँगलियों से मुझे यूँ नाच नाचना।  सपनों मे डूब कर उसके  हमारा आशियाँ बनाना।  सपनों मे खुश हूँ मे मेरी बस ख्वाहिश है इतनी~  ऐ खुदा मुझे जीने दे यही पे तू सपनों से न उठाना । शान(उर्फ़ सुभम ) की कलम से। ..........