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कम तजुर्बे में युगों को देखा है

जीवन की भागदौड़ में हमने ख्वाबों को पलते देखा  है , अबतक के एक-चौथाई तजुर्बे में, युगों को बदलते देखा है |  सन 99  में कार्गिल ! 2002  में गोधरा काँड!  11  में मुंबई ! 12  में दामिनी!  15 में पठानकोट!  16  में JNU ! इन आँखों ने भारत को पल पल जलते देखा है |  जज़्बातों के पाठ न पढ़ाओ हमें, हमने पत्थर तक को पिघलते देखा है |  उद्योग में बढ़ोत्री से मरते किसान तक ! बदलती सरकारों से लाचार जवान तक ! प्राचीन सँस्कारों से पश्चिमी सभ्यता तक ! लता जी के सुर से अर्जित की ताल तक ! इन आँखों ने हर दौर को गुजरते देखा है |  अँधेरे की आदत ना लगाओ "शान" ने सूरज को निकलते देखा है | शान उर्फ़ (सुभम ) की कलम से |