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नज़र आता है

हुनर का मोल नहीं कोई , अनमोल  हर हुनर नज़र आता है ।  अब तो दफ्तर से निकलते ही , बस घर नज़र आता है ।  सुखी हों भले होतीं थी मीठी , वो माँ के हाथ की रोटी ।  अब तो तली पुरियों में भी , मुझे कंकर नज़र आता है ।  -शान की कलम से । 

नदियां जैसे भोर में बहती

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नदियां जैसे   भोर में   बहती , मेरे दिल की ऐसी धारा है   इस दिल का ना कोई   मालिक , तेरा दिल इस दिल का किनारा है   भूल कर अब लैला मजनू को , नया दौर अपनाना है   जिस किसी से भी प्यार कि करो , जीवन भर साथ निभाना है ।                                                                                                                                              शान  की कलम से ।