बेशक तू भूल गई । ............

आशिकी की महफ़िल ,
                                     आशिकों का आना।                                         
रोज़ शाम तेरी जुल्फों का लेहराना। 

बेशक तू भूल गई ,
कायल था तेरे जुल्फों की छाँव का ये दीवाना।


ढूंढा गली गली तुझे,
तेरे जाने के बाद।
तुझ बिन सब बेरंग लगने लगा,
हर शाम हर अफ़साना ।

बेशक तू भूल गई ,
कायल था तेरे हर रंग का ये दीवाना । 


मंजूर करूँ तू जो कुछ भी सजा दे ,
कहीं तेरी जुदाई इस दीवाने को पागल न बना दे ।
काश खुदा फिर लौटा दे (२)
नज़रे चुरा कर वो तेरा शर्माना ।

बेशक तू भूल गई ,
कायल था तेरे शर्म का ये दीवाना ।


 शान ( उर्फ़ सुभम ) की कलम से। ………।  

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