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तुम्हारी याद आती है

आँखें खोलता हूँ, तुम्हारी याद आती है, डर कर बंद जो कर लूँ, तो दुगनी हो जाती है | किसी से बात करता हूँ , तुम्हारी याद आती है, खुद को मौन जो कर लूँ, तो दुगनी हो जाती है | अँधेरे में जो होता हूँ, तुम्हारी याद आती है, शमा रोशन जो कर दूँ, तो दुगनी हो जाती है | दिल की आरज़ू लिए, ये बात जुबां तक आती है, जब तुम पास आती हो, जुबां लड़खड़ा सी जाती है | फूलों की खूशबू से भी, तुम्हारी याद आती है, स्पर्श पत्तों का करता हूँ, तो दुगनी हो जाती है | प्रीत जब गुनगुनाता हूँ, तुम्हारी याद आती है, शब्दों से खेलता हूँ, तो दुगनी हो जाती है | लिखने को जब कलम उठाता हूँ, तुम्हारी याद आती है, पंक्तियाँ लिखते लिखते, न जाने कब ये कविता बन जाती है.!! बस तुम्हारी याद आती है..!! शान (उर्फ़ सुभम ) की कलम से......!!