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मोहोब्बत

मैं लाख मोहोब्बत लिख दूँ, वो हर बार मना कर देती है। नफरत करता हूँ दिल से तब ये आँख गुनाह कर देती है! मैं हूँ दफा के घेरे में, हर बार गुनाह कर देता हूँ! उसकी याद का दरिया धरातल पर, सुनामी बन आ जाता है! मैं दस बार मोहोब्बत लिखता हूँ, वो सौ बार मना कर देती है! ~शान की कलम से

किस्मत का लेखा जोखा है

किस्मत का लेखा जोखा है, जो सोचा है सो धोखा है । उसने चोरी से देखा है,  मैंने चोरी से देखा है । बालों की लट गालों पर लटकी है! नज़र हर मत वाले की अटकी है । अदाएं उसकी कायल है, पूरा कक्ष उसी पे घायल है ! बात है ये अध्ययन कक्ष की! उस कक्ष के सबसे प्यारे सख्स की ! फूल सा चेहरा आँखें नशीली, आवाज़ है उसकी बड़ी सुरीली ! कुछ रंगों में बाँधा है, रंग लाल उसके बिन आधा है । नीला रंग उसपर मनभावन है, वो लगती जैसे ऋतु सावन है ! उसका कद मानो हो क़ुतुब मीनार ! सूरत जैसे हो ताज महल ! है लाल किले सी मशहूर यहाँ ! वो रानी जोधा सी हूर लगे। जिस्से बात भी हम ना कर पाए, और उसकी क्या तारीफ़ करें, दिल डरता है कुछ ना समझे, उस्से बात हो ये सपना समझे ! हम उसको दिल से अपना समझें, ना जाने हमको वो क्या समझे । ~शान 

कम तजुर्बे में युगों को देखा है

जीवन की भागदौड़ में हमने ख्वाबों को पलते देखा  है , अबतक के एक-चौथाई तजुर्बे में, युगों को बदलते देखा है |  सन 99  में कार्गिल ! 2002  में गोधरा काँड!  11  में मुंबई ! 12  में दामिनी!  15 में पठानकोट!  16  में JNU ! इन आँखों ने भारत को पल पल जलते देखा है |  जज़्बातों के पाठ न पढ़ाओ हमें, हमने पत्थर तक को पिघलते देखा है |  उद्योग में बढ़ोत्री से मरते किसान तक ! बदलती सरकारों से लाचार जवान तक ! प्राचीन सँस्कारों से पश्चिमी सभ्यता तक ! लता जी के सुर से अर्जित की ताल तक ! इन आँखों ने हर दौर को गुजरते देखा है |  अँधेरे की आदत ना लगाओ "शान" ने सूरज को निकलते देखा है | शान उर्फ़ (सुभम ) की कलम से | 

भारत

अपने गुल से दामन को तू बचा कर रख, अबकी बार हर ठोस कदम उठाएगा भारत ! याद रख! इसबार माँ के दामन में खून की इक बूँद भी गिरी, तो तेरे दामन को तेरे खून से ही रंग आएगा भारत ! शान की कलम से |

आईने भी

आईने भी अपनी छवि निहारेंगे , जिस दिन हम अपनी कलम से एक कोरे पन्ने पे तुझे उतारेंगे ।  लोग जो चाँद सितारों को देखते हैं ,  यकीन मान , वो चाँद सितारें भी उस दिन तेरी नज़र उतारेंगे ।  शान की कलम से । 

नज़र आता है

हुनर का मोल नहीं कोई , अनमोल  हर हुनर नज़र आता है ।  अब तो दफ्तर से निकलते ही , बस घर नज़र आता है ।  सुखी हों भले होतीं थी मीठी , वो माँ के हाथ की रोटी ।  अब तो तली पुरियों में भी , मुझे कंकर नज़र आता है ।  -शान की कलम से । 

नदियां जैसे भोर में बहती

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नदियां जैसे   भोर में   बहती , मेरे दिल की ऐसी धारा है   इस दिल का ना कोई   मालिक , तेरा दिल इस दिल का किनारा है   भूल कर अब लैला मजनू को , नया दौर अपनाना है   जिस किसी से भी प्यार कि करो , जीवन भर साथ निभाना है ।                                                                                                                                              शान  की कलम से ।