कुछ पन्क्तिओ द्वारा मैंने बताना चाहा है की साधू कौन है? उसकी विशेषता क्या है ? उम्मीद है आप सभी पाठक गण को पसंद आये । माता के मंदिर मे हूँ ,मैं माता का दुलारा हूँ । प्रेम बाटूँ सबसे मिलकर मैं बुराई का हत्यारा हूँ । भटके मानव,पशु ,पक्षी खातिर मैं दरिया का किनारा हूँ । पापी एवम अधर्मी खातिर, मैं सिर्फ एक आवारा हूँ । ( एक साधू की ताकत क्या है ? वह क्या क्या कर सकता है ? ) मैं जहा हरी भजन कर दूँ ,वहाँ भक्ति मार्ग एक बन जाए । जो आचरण करे मेरे कीर्तन का परिवार समेत वो तर जाए । ( उसे मोह किसका है ? उसके माता-पिता कौन है ? उसका घर कहा है ? उसका पता,ठिकाना क्या है ? ) मोह-माया बस प्रभु की है,ना रिश्ता ना परिवार मेरा । घर मेरा मंदिर ही है ,मंदिर में मूरत माता की । जो विश को कंठ लगा बैठे , ऐसी लीला है पिताजी की । मोदक जिसका प्रिय आहार , वही भाई मेरा वही मित्र मेरा । ( और आखरी में एक साधू के सभी परिवार जानो की गिनती बताते हुवे कहा है की ) तैतीस कोटि...