निगाहें

निगाहें चार हो जाएँ मैं तलबदार हूँ उसका ,
महफ़िल-ए-दोस्तों में बात हमेशा राज़ रखता हूँ |

शान(उर्फ़ सुभम ) की कलम से ………… 

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