आँखें खोलता हूँ, तुम्हारी याद आती है, डर कर बंद जो कर लूँ, तो दुगनी हो जाती है | किसी से बात करता हूँ , तुम्हारी याद आती है, खुद को मौन जो कर लूँ, तो दुगनी हो जाती है | अँधेरे में जो होता हूँ, तुम्हारी याद आती है, शमा रोशन जो कर दूँ, तो दुगनी हो जाती है | दिल की आरज़ू लिए, ये बात जुबां तक आती है, जब तुम पास आती हो, जुबां लड़खड़ा सी जाती है | फूलों की खूशबू से भी, तुम्हारी याद आती है, स्पर्श पत्तों का करता हूँ, तो दुगनी हो जाती है | प्रीत जब गुनगुनाता हूँ, तुम्हारी याद आती है, शब्दों से खेलता हूँ, तो दुगनी हो जाती है | लिखने को जब कलम उठाता हूँ, तुम्हारी याद आती है, पंक्तियाँ लिखते लिखते, न जाने कब ये कविता बन जाती है.!! बस तुम्हारी याद आती है..!! शान (उर्फ़ सुभम ) की कलम से......!!
मैं लाख मोहोब्बत लिख दूँ, वो हर बार मना कर देती है। नफरत करता हूँ दिल से तब ये आँख गुनाह कर देती है! मैं हूँ दफा के घेरे में, हर बार गुनाह कर देता हूँ! उसकी याद का दरिया धरातल पर, सुनामी बन आ जाता है! मैं दस बार मोहोब्बत लिखता हूँ, वो सौ बार मना कर देती है! ~शान की कलम से
किस्मत का लेखा जोखा है, जो सोचा है सो धोखा है । उसने चोरी से देखा है, मैंने चोरी से देखा है । बालों की लट गालों पर लटकी है! नज़र हर मत वाले की अटकी है । अदाएं उसकी कायल है, पूरा कक्ष उसी पे घायल है ! बात है ये अध्ययन कक्ष की! उस कक्ष के सबसे प्यारे सख्स की ! फूल सा चेहरा आँखें नशीली, आवाज़ है उसकी बड़ी सुरीली ! कुछ रंगों में बाँधा है, रंग लाल उसके बिन आधा है । नीला रंग उसपर मनभावन है, वो लगती जैसे ऋतु सावन है ! उसका कद मानो हो क़ुतुब मीनार ! सूरत जैसे हो ताज महल ! है लाल किले सी मशहूर यहाँ ! वो रानी जोधा सी हूर लगे। जिस्से बात भी हम ना कर पाए, और उसकी क्या तारीफ़ करें, दिल डरता है कुछ ना समझे, उस्से बात हो ये सपना समझे ! हम उसको दिल से अपना समझें, ना जाने हमको वो क्या समझे । ~शान
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