नज़र आता है
हुनर का मोल नहीं कोई ,
अनमोल हर हुनर नज़र आता है ।
अब तो दफ्तर से निकलते ही ,
बस घर नज़र आता है ।
सुखी हों भले होतीं थी मीठी ,
वो माँ के हाथ की रोटी ।
अब तो तली पुरियों में भी ,
मुझे कंकर नज़र आता है ।
-शान की कलम से ।
It made me smile.. Thanks for sharing..
ReplyDeleteI composed this lines as i am about to enter this face of life very soon :) and it's a big achievement for me that it made someone smile :) it's my pleasure....
Deleteआपकी रचना भी अनमोल है, बहुत अच्छा लिखते हैं आप।
ReplyDeleteमृत्युंजय
http://www.mrityunjayshrivastava.com/
कुछ माँ का आशीर्वाद है और कुछ आप लोगों का |
Deleteलोगों को देखते ही मेरी कलम मचलने लगती है,
और फिर उँगलियों को नाच नाचती है ,
और फिर कविता तो यूँही बन जाती है |
बोहोत बोहोत धन्यवाद् आपका बस यूँही आशीर्वाद बनाये रखें :)
Small composition with great message .... nice one
ReplyDeleteThank you Karishma ji :)
DeleteHeartfelt poem :)
ReplyDeleteThank you ma'am :)
DeleteSuch a beautiful one!
ReplyDeleteThank you sir!
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