आज की मुलाक़ात



कहानी क्या बताऊँ आज की , लगा मुझे सच की मूरत वो थी ।
बिना किसी श्रृंगार के भी , बेहद खूबसूरत वो थी । 

वो जब मिलने  मुझसे आने वाली थी ,तब घड़ी मेरी १२ बजाने वाली थी । 
जब उन नज़रों ने मुझको देखा था , रवि सर पर चढ़ कर तब बैठा था । 

ना उन आँखों में सुरमा था , न होठों पे उसके लाली थी । 
जिसपर दिल फिरसे मेरा फिसला था , वो सूरत भोली भाली थी । 

क्या बयाँ करूँ नगमा उसकी झील सी २ आँखों का । 
क्या बताऊँ मतलब उसकी उन मीठी मीठी बातों का । 

जब देखा उसको करीब से , अपने सारे इरादे भूल गया । 
सूद -बूद मैं खो बैठा अपना,खुद से किए सारे वादे भी भूल गया । 

है जख्म जो मेरे सीने में ,कुछ वक्त के लिए दर्द भी उसका मीठा था । 
बह रहे थे २ नैनों से जो, रंग भी उन अश्कों का फीका था । 

क्या बताऊँ वो मंज़र उसके हवाओँ में उड़ते सुनहरे बालों का । 
था बड़ा ही खुश मिज़ाज उन फुले फुले गालों का । 

जो पकड़ी थी मैंने वो उसके कानों की काली बाली थी । 
जो कलाई मैंने थामी थी उसमें पहनी घड़ी भी उसने काली थी । 

अंत में जब ज़िक्र किसी का आया था ,
तब वक़्त ने मुझे खुद से किए सारे वादों को याद दिलाया था । 
कैसे मैं खुद से किए उन सारे वादों को भूल गया ?
कैसे मैं रो रो कर काटी उन सारी रातों को भूल गया ?

उससे मिलना जितना अच्छा था, ये दिन उतनाही बेकार गया । 
फिर इस बार खुदा ने दिखा दिया , मै अपना प्यार जीत कर भी हार गया । 


शान की कलम से। ..... 

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