अंतिम सत्य
अंतिम सत्य
दर्द बहोत हुआ मुझे जब मै सो रहा था ।
हर शख़्स जो जुड़ा था दूर मुझसे हो रहा था ।
जिसने ज़िन्दगी मुझको अपनी दान थी कर दी !
वह भावना का पानी उसकी आँखों को भी धो रहा था ।
वो शख़्स भी दुखी था जिसमे अंश था मेरा ,
दिल बाँध कर अपना, वो व्यवस्था देख रहा था ।
दिल बाँध कर अपना, वो व्यवस्था देख रहा था ।
क्या अनोखा एहसास था वो,
बचपन के बाद आज मुझको बड़ी शिद्दत से नहलाया गया था।
नए वस्त्रों मे मुझको लोगों के बीच लाया गया था।
नए वस्त्रों मे मुझको लोगों के बीच लाया गया था।
डरा था मै थोड़ा,
जब बांस की बनी सैय्या पे मुझको लिटाया गया था।
कहीं मै भागूं नहीं ये सोच ,
सूत की रस्सी से मुझको बाँधा गया था ।
जँच रहा था मै,
जब लाल,सुनहरा कफ़न मुझे ओढ़ाया गया था ।
चली जब बारात तो देखा बहुत लोग थे आये ,
मगर, सिर्फ चार कन्धों के सहारे मुझको उठाया गया था।
जब बांस की बनी सैय्या पे मुझको लिटाया गया था।
कहीं मै भागूं नहीं ये सोच ,
सूत की रस्सी से मुझको बाँधा गया था ।
जँच रहा था मै,
जब लाल,सुनहरा कफ़न मुझे ओढ़ाया गया था ।
चली जब बारात तो देखा बहुत लोग थे आये ,
मगर, सिर्फ चार कन्धों के सहारे मुझको उठाया गया था।
पहुँचा जो मंजिल पर तो आश्चर्य हुआ मुझको ।
जिस लकड़ी के झूले मे बचपन था सजा मेरा ,
जिस लकड़ी के झूले मे बचपन था सजा मेरा ,
उसी लकड़ी का मरणसेज मेरे लिए सजाया गया था ।
उसी आग मे जला कर राख कर डाला,
जिस आग से बचपन मे मै डराया गया था ।
जिस आग से बचपन मे मै डराया गया था ।
तब मैंने अंतिम सत्य को जाना ,
दौलत जितनी थी कमाई कुछ काम ना आई ।
कुछ कमाया जो था,
तो वो थे चंद वो कंधे जिनके सहारे अंतिम धाम तक मै लाया गया था ।
तो वो थे चंद वो कंधे जिनके सहारे अंतिम धाम तक मै लाया गया था ।
शान (उर्फ़ सुभम ) की कलम से ।
Very nice!
ReplyDelete