रिश्ता


                        
                                
                             रिश्ता दो दिलों के तार का बंधन होता है । एक रिश्ते का यह प्रकार भी होता है जो एक इंसान का खुद से हो । ऐसे रिश्ते को मनुष्य अपने स्वाभिमान या आत्म-सम्मान से जोड़ता है ।
अगर हम दो दिलों के रिश्ते की बात करें तो यह रिश्ते दो दिलों के बीच तब आते हैं जब उनका जो अपना खुद से रिश्ता होता है दोनों दिलों का, वह उन्हें एक दूसरे के रिश्ते की तरफ आकर्षित करता है । यह मुर्ख  मनुष्य के समझ से परे हैं । 
यह दो दिल एक दूसरे के रिश्ते से आकर्षित तब होते हैं जब उन्हें सामने वाले का स्वभाव , बातें करने का तरीका और कुछ समानताएँ जो एक दूसरे से मेल खाती हों, ऐसा महसूस हो । 
उपयुक्त अनुच्छेदों में हम सबने रिश्तों का मतलब और उनके प्रकार को जाना । अब रिश्तों को कैसे चलाना है यह जानना भी आवश्यक है क्योकि ये कोई वाहन नहीं जो डीज़ल या पेट्रोल से चलें । मेरा तो मानना है कि यह एक ऐसा साधन है जो समझौते से चलता है । जब तक ये समझौते होते रहेंगे तब तक ये रिश्तेरूपी वाहन चलते रहेंगे । इसे इंजन की नहीं त्याग की जरुरत होती है । जो कहीं ना कहीं दोनो के हिस्से बराबर लगता है। जैसे कि ताली बजाने के लिए दो हाथों का होना बहुत जरुरी है। ठीक उसी तरह रिश्ते को चलाने के लिए त्याग के तराजू के दोनों पलड़ों का बराबर होना जरुरी है। इसके ना होने पर रिश्ते को बरकरार रखने के लिए किसी एक को समझौता करना जरुरी होता है। जैसे एक हाथ के अपंग होने पर दूसरे हाथ की कोशिश से ताली बजायी जा सकतीं है। जिससे पहले हाथ के ना उठने पर भी आवाज़ उतनी ही होती है और दूसरे हाथ के ठीक होने का हौसला बुलंद होता है ठीक उसी तरह अगर एक व्यक्ति समझौते का रास्ता अपनाता है तो एक न एक दिन दूसरा व्यक्ति त्याग के तराजू के दोनों पलड़े बराबर करने हेतु अपना पूरा योगदान देता है।
      ऐसे ही रिश्ता चलता है।  



शान (उर्फ़ सुभम) की कलम से।........  

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