कन्यादान के बाद
"कन्यादान के बाद" कविता का शीर्षक इसलिए लिखता हूँ क्योकि यह कविता में मैंने एक पिता का दुःख बताया है । आप सब हसेंगे मगर जैसे पुत्र-वियोग होता है वैसेही पुत्री-वियोग भी होता है । इस कविता में मैंने यही पुत्री-वियोग को बताने की कोशिश की है । कन्यादान के बाद नहीं आपबीती ये किसी की है , मैं आत्मा पे बीती कह देता हूँ । (मैं )पिता नहीं किसी पुत्री का, तब पर भी दुःख कन्यादान का बतलाता हूँ । जिन हाथों से उसको पाला था , उन्हीं हाथों से उसको विदा किया । दी क़ीमत भी उस लड़के की , संग बेटी को अपनी विदा किया । तेरा दिया तोहफ़ा गवाँ दिया , हाय राम ! ये कैसा मैंने सौदा किया ? जिसके बचपन से आँसू पोछे थे , उसे आज़ मैने ही रुला दिया । जो कल तक मेरे घऱ की रानी थी , आज किसी के घऱ की दासी बना दिया । तेरा दिया तोहफ़ा गवाँ दिया , हाय राम ! ये कैसा मैंने सौदा किया ? जब माँ उसकी, मुझको कुछ कह देती थी , मेरी ख़ातिर अपनी माँ से वो लड़ लेती थी । जिसने क़दम क़दम मेरा साथ दिया , कैसे मैंने उस कन्या का दान दिया ? तेरा दिया तोह...