माता जगत जननी से एक भक्त की बिनती.....

माता जगत जननी से एक भक्त की बिनती



एक भक्त माँ से कैसी बिनती करता है यह एक रचना द्वारा आप सभी के
 समक्ष में अपने सब्दों में पेश करता हूँ।

(बोहोत दिनों के बाद कुछ लिखने का प्रयास किया है उम्मीद है आप सभी को पसंद आये )

तो भक्त माँ जगत जननी से कुछ ऐसे कहता है:-

करुणामयी करुणानिधान ,
बस देदे  मुझको ये वरदान ,
तू साथ रहे, मेरे साथ चले ,
यह मात्र एक मेरी बिनती है। 

अगली पंक्ति में वह उसे भी पाने से मना कर देता है जो हर मनुष्य की दो इच्छा होती है ।

माया का कभी ना लोभ करूँ ,
काया से हमेशा दूर रहूँ ,
माता तेरा आभारी हूँ !
फूल डाल कर राहों में ,
कांटें तू हमेशा चुनती है ।
हो राह में कांटें भले अगर ,
तू साथ रहे ,मेरे साथ चले ,
यह मात्र एक मेरी बिनती है ।

अब कैसे माता को अपना साझेदार बताता है यह अगली पंक्ति में ध्यान दीजियेगा ।

जो कुछ मिले वो भाग लगे ,
पैया न पौना , आध लगे ,
लोग फलें बढ़ें उन्नति करें ,
तेरे चरणों का आशीर्वाद लगे ,

अगली पंक्ति में वह माता पर अपने बेटे होने का हक़ कैसे जताता है ।

सारी दुनिया का सरपर ताज तेरे ,
मेरी माता में तेरी गिनती है ,
तू साथ रहे ,मेरे साथ चले ,
यह मात्र एक मेरी बिनती है ।

अब कैसे वह माँ को याद करता है और कब कब ये उसने अगली पंक्ति में बताया है । 

सोते वक़्त तेरा में ध्यान धरूँ ,
सुबह उठकर तुझको में प्रणाम करूँ ,
दिन रात तेरा गुणगान करूँ ,
करुणामयी करुणानिधान ,
बस देदे  मुझको ये वरदान ,
तू साथ रहे, मेरे साथ चले ,
यह मात्र एक मेरी बिनती है।


यही है सच्चा भक्त जो माँ पर हक़ जाताता है , लोगों की उन्नति के लिए माँ का आशीर्वाद मांगता है , मगर अपने लिया माँ से निःस्वार्थ प्रेम करते हुवे बस  तरह साथ चलने और साथ रहने का वरदान मांगता है ।

शान( उर्फ़ सुभम ) की कलम से........ 







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