"माँ" से दूर
"माँ" से दूर
पता नहीं सुख चैन मेरा कहा खो गया ,
होते हुवे भी सब मै अकेला हो गया ,
हिम्मत होने पर भी मै मजबूर हो गया ,
न जाने कब मै "माँ" से इतना दूर हो गया |
जब करता था मै गलती तो वो डाँट कर पापा से छुपाया करती थी ,
रहता था जब बीमार मै वो खुद की नींदें उड़ाया करती थी ,
आज बिमारी मे वो अधिकार खो गया,
न जाने कब मे "माँ" से इतना दूर हो गया |
बोलता था जो मे वो मुझको खिलाया करती थी ,
नींद न आये रात मे तो कहानियां सुनाया करती थी ,
आज उन कहानियों का ख्वाब खो गया ,
न जाने कब मै "माँ" से इतना दूर हो गया |
चोट लगने पर वो मुझे मरहम लगाया करती थी ,
दर्द होता गर मुझे तो अश्क वो बहाया करती थी ,
याद मै उसके अब अश्क मै बहाया करता हूँ ,
न जाने किस मोड़ पर गुनाह मुझसे हो गया |
वक्त गुजरा और माँ का प्यार दूर हो गया |
न जाने कब मै "माँ" से दूर इतना हो गया |
न जाने कब मै "माँ" से इतना दूर हो गया |
शान ( उर्फ़ सुभम ) की कलम से | .........
K aaj tere saath nahi main to kya hua,
ReplyDeletetere sir pe mera haath nahi to kya hua
dil pe haath rakh k, sar utha k to dekh,
aankhen bandh kar, muskura k to dekh
tere saath khari hu aaj bhi,
mere ehsaas ko bhitar sma k to dekh....
Poignant !
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