नज़र आता है
हुनर का मोल नहीं कोई , अनमोल हर हुनर नज़र आता है । अब तो दफ्तर से निकलते ही , बस घर नज़र आता है । सुखी हों भले होतीं थी मीठी , वो माँ के हाथ की रोटी । अब तो तली पुरियों में भी , मुझे कंकर नज़र आता है । -शान की कलम से ।